बिहारी के दोहे: NBSE Class 10 Alternative Hindi (हिन्दी)

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Get notes, summary, questions and answers, MCQs, extras, and PDFs of Chapter 2 “बिहारी के दोहे (Bihari ke Dohe)” which is part of Nagaland Board (NBSE) Class 10 Alternative Hindi answers. However, the notes should only be treated as references and changes should be made according to the needs of the students.

सारांश (Summary)

बिहारी के दोहे (Bihari ke Dohe) भारतीय साहित्य में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। बिहारी (Bihari) ने अपने दोहों में जीवन के गहरे अनुभवों और सच्चाइयों को सरल और छोटे रूप में प्रस्तुत किया है। इस संग्रह में समाज, संगति, मनुष्य के गुण और दोष, तथा प्रकृति के साथ जीवन के संबंध को बखूबी समझाया गया है।

पहले दोहे में बिहारी बताते हैं कि संगति का प्रभाव व्यक्ति पर अवश्य पड़ता है। वह उदाहरण देते हैं कि जैसे टेढ़ी भौहें किसी के संग होने पर आँखों की दृष्टि भी टेढ़ी हो जाती है, वैसे ही बुरी संगति का असर सब पर होता है।

दूसरे दोहे में वे धन और मन की स्थिति की तुलना करते हुए बताते हैं कि जैसे जल बढ़ने पर कमल खिलता है, वैसे ही मन भी संपत्ति के बढ़ने से प्रसन्न होता है। परंतु यदि कमल को पानी नहीं मिलता, तो वह मुरझा जाता है; उसी तरह, मन भी संपत्ति के घटने पर सूख जाता है।

बिहारी मानते हैं कि केवल बड़ा नाम होना पर्याप्त नहीं है, गुणों के बिना बड़ाई टिक नहीं सकती। उदाहरण देते हैं कि जैसे धतूरे से सोना नहीं गढ़ा जा सकता, वैसे ही गुणहीन व्यक्ति सम्मान के योग्य नहीं होता।

उन्होंने मनुष्य और जल की गति को समान बताया है—जैसे जल नीचे की ओर बहता है, वैसे ही नीच व्यक्ति अपनी प्रकृति के अनुसार नीचे ही गिरता है। उनका संदेश है कि बिना मेहनत और गुणों के ऊँचाई प्राप्त नहीं की जा सकती।

अंत में, कनक (सोना) शब्द को दो रूपों में इस्तेमाल कर बताया कि चाहे यह धातु हो या नशे वाली चीज़, दोनों की अधिकता व्यक्ति को पागल कर देती है।

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पंक्ति दर पंक्ति (Line by line) स्पष्टीकरण

संगति दोषु लगौ सबनु कहे ते साँचे बैन।
सभी लोग यह सच्ची बात कहते हैं कि बुरी संगति का दोष लगता है। यहां संगति का मतलब संगति यानी किसके साथ उठते-बैठते हैं। “साँचे बैन” का मतलब है सच्चे शब्द, यानी यह बात सच है कि बुरी संगति का असर किसी पर पड़ता है।

कुटिल – बंक ध्रुव संग भए कुटिल बंक गति नैन।।
जैसे टेढ़े-मेढ़े (कुटिल-बंक) भौंहों का साथ होने से आंखों की गति भी टेढ़ी हो जाती है। यहां “कुटिल” का मतलब टेढ़ा और “बंक” का मतलब झुका हुआ है, और भौंहों और आंखों का उदाहरण देकर कवि ने यह बताया है कि संगति का असर कैसे पड़ता है।

बढ़त-बढ़त सम्पति-सलिलु मन सरोज बढ़ि जाइ।
सम्पत्ति रूपी जल जैसे-जैसे बढ़ता है, मन रूपी कमल भी उसी तरह खिलता है। “सम्पत्ति-सलिल” का मतलब है धनराशि, जो यहां जल की तरह बढ़ती है। मन रूपी कमल इस बढ़ती हुई संपत्ति से और खिलने लगता है।

घटत-घटत सु न फिर घटै बरु समूल कुम्हिलाइ।।
जब सम्पत्ति घटने लगती है, तो वह फिर से नहीं बढ़ती, बल्कि पूरी तरह से सूखकर समाप्त हो जाती है। “समूल कुम्हिलाइ” का मतलब है जड़ से सूख जाना। यह पंक्ति बताती है कि संपत्ति जब कम होने लगती है, तो उसका असर भी पूरी तरह समाप्त हो जाता है।

बड़े न हुजै गुननु बिनु बिरद बड़ाई पाइ।
कोई भी व्यक्ति सिर्फ बड़ा नाम होने से महान नहीं बनता, गुणों के बिना यह संभव नहीं है। “बिरद” का मतलब है प्रसिद्धि या ख्याति। कवि यह बताना चाहते हैं कि ख्याति या बड़े नाम से कुछ नहीं होता, बल्कि असली महत्व गुणों का होता है।

कहत धतूरे सौ कनकु गहनौ गढ्यौ न जाइ।।
जैसे धतूरे का फल, चाहे सोने से बना हो, फिर भी उसका महत्व नहीं होता। यहां कवि यह समझा रहे हैं कि जैसे धतूरा चाहे कितना भी सुंदर क्यों न लगे, वह जहरीला होता है, वैसे ही बिना गुणों के किसी की बड़ी प्रतिष्ठा का कोई मूल्य नहीं है।

कोटि जतन कोऊ करौ परै न प्रकृतिहिं बीचु।
कोई लाख कोशिश कर ले, फिर भी प्रकृति को बदलना संभव नहीं है। यहां “प्रकृति” का मतलब स्वभाव या प्राकृतिक गुणों से है। इस पंक्ति में कवि यह बता रहे हैं कि इंसान की स्वाभाविक प्रकृति को बदलना बहुत कठिन होता है।

नलबल जलु ऊँचै चढ़े अंत नीच कौ नीचु।।
जैसे नल के द्वारा जल ऊंचाई पर चढ़ता है, लेकिन अंत में वह नीचे ही गिरता है। यह एक उदाहरण है कि चाहे जितनी कोशिशें कर लो, नीच स्वभाव वाला व्यक्ति अंत में नीच ही रहेगा।

जगत जनायौ जिहिं सकल सो हरि जान्यौ नाहिं।
जिसने सारे संसार को बनाया, उसे कोई नहीं जान पाया। यहां “हरि” का मतलब भगवान से है। कवि यह कहना चाहते हैं कि हम संसार की हर चीज़ को जान सकते हैं, लेकिन भगवान को पूरी तरह जान पाना संभव नहीं है।

ज्यों आँखिन सब देखियत आँखि न देखी जाहिं।।
जैसे हमारी आंखें सब कुछ देख सकती हैं, लेकिन स्वयं को नहीं देख पातीं। इस पंक्ति में एक गहरा विचार छिपा है, जिसमें यह बताया जा रहा है कि जैसे आंखें खुद को नहीं देख सकतीं, वैसे ही ईश्वर को जानना मुश्किल है।

कनक- कनक तैं सौ गुनी मादकता अधिकाइ।
सोने और धतूरे के समान में से, धतूरा (कनक) सौ गुना अधिक मादक होता है। यहां “कनक” का दोहरा अर्थ है: सोना और धतूरा। इस पंक्ति में कवि यह बता रहे हैं कि धतूरा, चाहे सोने जैसा दिखाई दे, लेकिन उसकी मादकता यानी नशा (विष) कई गुना ज्यादा होता है।

उहि खाये बौराइ जग इहि पाये बौराइ।।
जिसने धतूरा खा लिया, वह पागल हो गया, और जिसने सोना प्राप्त किया, वह भी इससे प्रभावित होकर विचलित हो गया। यह पंक्ति यह बताती है कि दोनों चीजें अपने तरीके से खतरनाक हैं – धतूरा खाने से शारीरिक पागलपन और सोने के लालच से मानसिक अस्थिरता आती है।

नर की अरु नल नीर की गति एकै करि जोइ।
मनुष्य की प्रकृति और नल से बहते पानी की प्रकृति एक जैसी होती है। यहां “नल नीर” का मतलब नल से बहता पानी है। कवि कहना चाहते हैं कि जैसे पानी का स्वभाव नीचे की ओर बहने का होता है, वैसे ही मनुष्य का स्वभाव भी होता है, जो धीरे-धीरे खुद को गिराता है।

जेतों नीचो है चलै तेतो ऊँचो होइ।।
जितना नीचे की ओर जाएगा, उतना ऊंचा उठेगा। यहां कवि यह बताना चाहते हैं कि मनुष्य को विनम्र होना चाहिए क्योंकि जब कोई नीचे की स्थिति में होता है, तभी वह महान ऊंचाइयों पर पहुंच सकता है।

बसै बुराई जासु तन ताही को सनमान।
जिस व्यक्ति के शरीर में बुराई बस जाती है, उसे कोई सम्मान नहीं मिलता। यहां “सनमान” का मतलब है सम्मान या प्रतिष्ठा। कवि यह समझा रहे हैं कि जिस व्यक्ति का मन और शरीर बुराई से भरा हुआ हो, उसे समाज से आदर नहीं मिल सकता।

भला- भलो कहि छोड़िये खोटे ग्रह जप दान।।
अच्छे व्यक्ति को अच्छा कहकर छोड़ देना चाहिए, लेकिन बुरे व्यक्ति को सुधारने के लिए उपाय करने चाहिए। “जप दान” का मतलब है आध्यात्मिक उपाय। इस पंक्ति में कवि यह सलाह दे रहे हैं कि अच्छे लोगों को प्रोत्साहित करना चाहिए और बुरे लोगों को सुधारने की कोशिश करनी चाहिए।

अरे हंस या नगर में जेयौ आप बिचार।
हे हंस, तुम खुद सोचो, क्या इस नगर में आना सही था? यहां “हंस” का मतलब है एक पवित्र और बुद्धिमान व्यक्ति। इस पंक्ति में कवि हंस से यह सवाल पूछते हैं कि उसने इस स्थान पर आकर सही निर्णय लिया है या नहीं।

कागन सौं जिन प्रीति कर कोकिल दई बिडार।।
कौओं से प्रेम मत करो, क्योंकि कोयल ने उन्हें छोड़ दिया है। यहां कवि हंस को यह सलाह दे रहे हैं कि उसे अच्छी संगति करनी चाहिए, न कि कौओं जैसी बुरी संगति। “कोकिल” (कोयल) से तात्पर्य है बुद्धिमान और शुभ संगति।

पाठ्य प्रश्न और उत्तर (textual questions and answers)

अभ्यास प्रश्न

1. बिहारी के प्रमुख ग्रंथ का नाम बताइये।

उत्तर: बिहारी का प्रमुख ग्रंथ “सतसई” है।

2. अपनी रचनाओं में बिहारी ने किस भाषा का प्रयोग किया है?

उत्तर: बिहारी ने अपनी रचनाओं में ब्रज भाषा का प्रयोग किया है।

3. बिहारी के अनुसार समाज में कैसे लोगों को सम्मान मिलता है?

उत्तर: बिहारी के अनुसार समाज में उन्हीं लोगों को सम्मान मिलता है जिनके शरीर में कोई बुराई नहीं होती।

4. बिहारी ने मनुष्य एवं जल की प्रकृति को क्यों समान माना है?

उत्तर: बिहारी ने मनुष्य एवं जल की प्रकृति को इसलिए समान माना है क्योंकि जिस प्रकार पानी नीचे की ओर बहता है और ऊपर चढ़ने पर नीचे गिरता है, वैसे ही नीच मनुष्य भी नीचता की ओर ही बढ़ता है।

5. नीच मनुष्य की प्रकृति में बदलाव कैसे नहीं आता?

उत्तर: बिहारी के अनुसार नीच मनुष्य की प्रकृति में कोई भी बदलाव नहीं आता चाहे कोई उसे सुधारने के लिए कितने भी प्रयास करे, वह अंततः नीच ही रहता है।

6. नाम बड़ा होने से गुणवान नहीं होता यह किस प्रकार बिहारी ने सिद्ध किया है?

उत्तर: बिहारी ने धतूरे के उदाहरण से सिद्ध किया है कि जैसे धतूरे का नाम बड़ा होने से वह सोने के समान नहीं हो जाता, वैसे ही केवल नाम बड़ा होने से कोई गुणवान नहीं हो सकता।

7. कनक-कनक तैं सौ गुनी में कनक शब्द का अर्थ दो रूपों में किया गया है इससे कवि क्या स्पष्ट करना चाहता है?

उत्तर: “कनक-कनक तैं सौ गुनी” में ‘कनक’ का अर्थ सोना और धतूरा दोनों रूपों में किया गया है। कवि यह स्पष्ट करना चाहता है कि सोना और धतूरा दोनों ही अधिक मात्रा में लेने से मनुष्य को विकार उत्पन्न करते हैं, इसलिए इन दोनों से सावधान रहना चाहिए।

8. निम्नलिखित पंक्तियों की सन्दर्भ तथा प्रसंग सहित व्याख्या कीजिये

(क): संगति दोषु लगौ सबनु कहे ते साँचे बैन।
कुटिल – बंक भ्रुव संग भए कुटिल बंक गति नैन।।

उत्तर: सन्दर्भ: यह पंक्तियाँ बिहारी के प्रसिद्ध ग्रंथ “बिहारी सतसई” से ली गई हैं।

प्रसंग: कवि बिहारी इन पंक्तियों में संगति के दोष को दर्शाते हुए यह समझाने का प्रयास करते हैं कि किस प्रकार संगति का प्रभाव मनुष्य के आचरण और स्वभाव पर पड़ता है।

व्याख्या: इस दोहे में कवि बिहारी कहते हैं कि संगति का दोष अवश्य ही मनुष्य पर पड़ता है, इसे सभी सत्य मानते हैं। जिस प्रकार तिरछी भौहों के साथ आँखों की चाल भी तिरछी हो जाती है, ठीक उसी प्रकार बुरे लोगों के साथ रहने से अच्छे लोग भी बुरे स्वभाव को अपना लेते हैं। संगति का प्रभाव इतना गहरा होता है कि यह मनुष्य के नैतिक और मानसिक गुणों को परिवर्तित कर देता है। इसलिए, हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि हम किसकी संगति में रह रहे हैं, क्योंकि संगति का दोष हम पर भी लग सकता है।

(ख): बड़े न हूजै गुननु बिनु बिरद बड़ाई पाइ।
कहत धतूरे सौ कनकु गहनौ गढ्यौ न जाइ।।

उत्तर: सन्दर्भ: यह पंक्तियाँ बिहारी के “बिहारी सतसई” से ली गई हैं।

प्रसंग: इन पंक्तियों में कवि बिहारी ने गुण और बड़ाई के बीच के अंतर को स्पष्ट किया है।

व्याख्या: कवि कहते हैं कि बिना गुणों के किसी भी व्यक्ति की प्रतिष्ठा और बड़ाई नहीं की जा सकती है। यदि धतूरे के समान गुणहीन व्यक्ति को सोने की माला में पिरो भी दिया जाए, तब भी उसकी वास्तविकता नहीं बदलेगी। धतूरा जहरीला होता है और सोने की माला भी उसकी प्रकृति को नहीं बदल सकती। इसी प्रकार, किसी व्यक्ति का बड़ा नाम या प्रतिष्ठा होना उसके गुणों का परिचायक नहीं हो सकता। इसलिए, केवल नाम और दिखावे से ही कोई व्यक्ति महान नहीं बनता, उसके लिए गुणों की आवश्यकता होती है।

(ग): बसै बुराई जासु तन ताही को सनमान।
भलो भलो कहि छोड़िये खोटे ग्रह जप दान।।

उत्तर: सन्दर्भ: यह पंक्तियाँ बिहारी के “बिहारी सतसई” से ली गई हैं।

प्रसंग: इस दोहे में बिहारी बुरे लोगों से दूर रहने की सलाह दे रहे हैं।

व्याख्या: कवि बिहारी कहते हैं कि जिस व्यक्ति के शरीर में बुराई वास करती है, उसे समाज में कोई सम्मान नहीं मिलता है। ऐसे लोगों को अच्छे शब्दों में समझाकर छोड़ देना ही उचित है। बुरे स्वभाव वाले लोगों से भले ही कितनी भी अच्छाई की उम्मीद की जाए, वे अपने स्वभाव के कारण सम्मान के पात्र नहीं बन सकते। उनके साथ कोई भी उपकार या धार्मिक कार्य करना व्यर्थ होता है, क्योंकि उनका मूल स्वभाव बुरा ही रहता है। अतः हमें ऐसे लोगों से दूरी बनाकर ही रहना चाहिए और किसी प्रकार की अपेक्षा नहीं रखनी चाहिए।

भाषा अध्ययन

1. नीचे लिखे शब्दों के दो-दो पर्यायवाची शब्द लिखिये-

(क) आसमान: गगन, आकाश
(ख) अनुपम: अद्वितीय, निराला
(ग) पेड़: वृक्ष, तरु
(घ) माता: जननी, अम्मा
(ङ) लहर: तरंग, उर्मि
(च) सोना: स्वर्ण, कंचन
(छ) पहाड़: पर्वत, अचल
(ज) फूल: पुष्प, सुमन
(झ) मछली: मीन, मत्स्य

2. नीचे लिखे शब्दों के विलोम शब्द लिखिये-

(क) भूत: भविष्य
(ख) बाढ़: सूखा
(ग) पुरस्कार: दंड
(घ) प्रकाश: अंधकार
(ङ) पतन: उत्थान
(च) पवित्र: अपवित्र
(छ) प्राचीन: नवीन
(ज) नीति: अनीति
(झ) मालिक: नौकर
(ञ) रक्षक: भक्षक
(ट) रक्षा: आक्रमण

3. नीचे लिखे शब्दों के अर्थ भेद करते हुए वाक्य बनाइये-

(क) कनक:
सोना – मेरी दादी ने मुझे कनक की अंगूठी दी।

(ख) कोटि:
प्रकार – संसार में जीवों की अनेक कोटियाँ हैं।

(ग) अर्क:
सूर्य – अर्क उदय होते ही धरती रोशन हो गई।

(घ) अम्बर:
आकाश – अम्बर में तारे जगमगा रहे हैं।

(ङ) जन:
लोग – शहर के सभी जन मेले में शामिल हुए।

(च) पानी:
जल – नदी का पानी बहुत साफ है।

4. नीचे लिखे वाक्यों में खाली जगहों को कोष्ठक में दिये गये उपयुक्त शब्दों को भरिये-

(क) कोहिमा एक ________ है। (शहर, सहर)

उत्तर: शहर

(ख) तेज़न बड़ा ________ है। (दीन, दिन)

उत्तर: दीन

(ग) मेरे मित्र के पास ________ है। (कृपण/कृपाण)

उत्तर: कृपण

(घ) वह बहुत ही ________ है। (कृपण/कृपाण)

उत्तर: कृपण

(ङ) यह मेरा ________ है। (गृह/ग्रह)

उत्तर: गृह

(च) उसके कपड़े ________ की गंध आ रही है। (इत्र/इतर)

उत्तर: इत्र

(छ) ________ भीख माँगता है। (कंकाल, कंगाल)

उत्तर: कंगाल

(ज) ________ के तीन भेद होते हैं। (कत, काल)

उत्तर: काल

5. नीचे लिखे हिन्दी वाक्यों का अनुवाद अंग्रेजी में कीजिये-

(क) किसी व्यक्ति की पहचान उसकी संगति से होता है।

उत्तर: A person is known by the company they keep.

(ख) अनुशासन ही देश को महान् बनाता है।

उत्तर: Discipline alone makes a country great.

(ग) संघर्ष ही जीवन है।

उत्तर: Struggle is life.

(घ) जल ही जीवन है।

उत्तर: Water is life.

(ड) सभी चमकनेवाली वस्तुएँ सोना नहीं होतीं।

उत्तर: All that glitters is not gold.

(च) भारतीय संस्कृति पुरानी है।

उत्तर: Indian culture is ancient.

(छ) हमें बाढ़-पीड़ितों की सहायता करनी चाहिए।

उत्तर: We should help the flood victims.

अतिरिक्त (extras)

प्रश्न और उत्तर (questions and answers)

1. संगति दोषु लगौ सबनु कहे ते साँचे बैन।
कुटिल – बंक भ्रुव संग भए कुटिल बंक गति नैन।

उत्तर: ये पंक्तियाँ बिहारी के दोहों से ली गई हैं। इसमें कवि ने संगति या साथ का प्रभाव बताया है। कवि के अनुसार, जैसे टेढ़ी भौंहों के साथ रहने वाली आंखें भी टेढ़ी दिखाई देती हैं, वैसे ही बुरे संगत का प्रभाव अच्छे लोगों पर भी पड़ता है। यहां यह स्पष्ट किया गया है कि मनुष्य की संगति उसके व्यवहार और स्वभाव पर गहरा प्रभाव डालती है। बुरी संगति से अच्छे लोग भी अपनी सही राह से भटक सकते हैं।

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10. बड़े न हूजै गुननु बिनु बिरद बड़ाई पाइ का अर्थ क्या है?

उत्तर: इसका अर्थ है कि बिना गुणों के केवल नाम और प्रसिद्धि से कोई महान नहीं होता।

बहुविकल्पीय प्रश्न (MCQs)

1. बिहारी के प्रमुख ग्रंथ का नाम क्या है?

(क) रामचरितमानस
(ख) बिहारी सतसई
(ग) विनय पत्रिका
(घ) महाभारत

उत्तर: (ख) बिहारी सतसई

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9. कौन सा पक्षी हमेशा अपने साथी का चयन सोच-समझकर करता है?

(क) कौआ
(ख) हंस
(ग) कोयल
(घ) कबूतर

उत्तर: (ख) हंस

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