पुजारी भजन पूजन और साधन: NBSE Class 10 Alternative Hindi (हिन्दी)

पुजारी भजन पूजन और साधन
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Get notes, summary, questions and answers, MCQs, extras, and PDFs of Chapter 6 “पुजारी भजन पूजन और साधन (Pujari Bhajan Poojan aur Sadhan)” which is part of Nagaland Board (NBSE) Class 10 Alternative Hindi answers. However, the notes should only be treated as references and changes should be made according to the needs of the students.

सारांश (Summary)

रवीन्द्रनाथ ठाकुर (Ravindranath Thakur) द्वारा रचित “पुजारी भजन पूजन और साधन” (Pujari Bhajan Poojan aur Sadhan) कविता में कवि ने पुजारी को भजन और पूजन की पारंपरिक सीमाओं से बाहर निकलने की सलाह दी है। कवि का संदेश यह है कि केवल मंदिर में बैठकर भगवान की आराधना करना पर्याप्त नहीं है। उन्होंने पुजारी से कहा है कि वह अपनी आंखें खोले और देखे कि उसका देवता मंदिर छोड़कर कर्मभूमि में चला गया है, जहां किसान और मजदूर अपनी मेहनत से जीवन का निर्माण कर रहे हैं।

कवि पुजारी से यह आग्रह करता है कि वह भी इन मेहनतकश लोगों के साथ जुड़े, उनके साथ काम करे और अपने पसीने से अपने कर्म को पवित्र बनाए। वह यह बताना चाहते हैं कि सच्ची पूजा केवल ध्यान और भजन में नहीं, बल्कि कर्म करने में है। किसान और मजदूर दिन-रात कठिन परिस्थितियों में मेहनत करते हैं, और उनके साथ काम करना ही सच्ची उपासना है।

इस कविता में एक महत्वपूर्ण संदेश है कि मुक्ति और सच्ची भक्ति केवल कर्म के माध्यम से प्राप्त की जा सकती है। कवि यह भी कहते हैं कि भगवान स्वयं सृष्टि-निर्माण में लगे हुए हैं, वे कर्म में बंधे हुए हैं, और इंसान को भी अपने काम से कभी अलग नहीं होना चाहिए।

इस प्रकार, कवि पुजारी को फूलों और कपड़ों की शुद्धता से अधिक कर्म की पवित्रता को महत्व देने की प्रेरणा देते हैं।

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पंक्ति दर पंक्ति (Line by line) स्पष्टीकरण

पुजारी! भजन पूजन साधन आराधना / इन सबको किनारे रख दे।

कवि पुजारी से कहता है कि वह भजन, पूजन, साधन और आराधना, अर्थात पूजा के सभी रूपों को छोड़ दे। कवि का तात्पर्य यह है कि अब समय आ गया है जब इन आध्यात्मिक क्रियाओं से अधिक कर्म का महत्व है। वह यह कहना चाहता है कि केवल पूजा में डूबे रहना पर्याप्त नहीं है।

द्वार बन्द करके देवालय के कोने में क्यों बैठा है? / अपने मन के अन्धकार में छिपा बैठा तू कौन-सी पूजा में मग्न है?

कवि पूछता है कि पुजारी ने मंदिर के दरवाजे बंद करके अपने कोने में क्यों छिपा लिया है। वह यह भी कहता है कि पुजारी अपने ही मन के अंधकार में डूबा हुआ है। यहाँ ‘अंधकार’ से तात्पर्य है कि वह वास्तविकता से दूर है, अपने कर्म से दूर होकर पूजा में लीन है।

आँखें खोलकर ज़रा देख तो सही / तेरा देवता देवालय में नहीं है।

कवि पुजारी से कहता है कि वह अपनी आँखें खोले और देखे कि उसका भगवान अब मंदिर में नहीं है। यह एक रूपक है, जिसका अर्थ है कि भगवान अब केवल पूजा स्थलों में नहीं हैं, बल्कि उन स्थानों पर हैं जहाँ लोग कठिन परिश्रम कर रहे हैं।

जहाँ मज़दूर पत्थर फोड़कर रास्ता तैयार कर रहे हैं / तेरा देवता वहीं चला गया है !

यहाँ कवि स्पष्ट करता है कि भगवान वहाँ हैं जहाँ मजदूर अपने कठिन श्रम से रास्ते बना रहे हैं। यह दर्शाता है कि भगवान उन लोगों के साथ हैं जो कड़ी मेहनत कर रहे हैं, और कर्म का महत्व पूजा से अधिक है।

वे धूप-बरसात में एक समान तपते-झुलसते हैं / उनके दोनों हाथ मिट्टी में सने हैं।

कवि कहता है कि मजदूर धूप और बारिश में समान रूप से संघर्ष कर रहे हैं, और उनके हाथ मिट्टी में सने हुए हैं। यह इस बात का प्रतीक है कि वे वास्तविक जीवन के कठिन कार्यों में लगे हुए हैं।

उनकी तरह सुन्दर परिधान त्यागकर मिट्टी-भरे रास्तों से जा / तेरा देवता देवालय में नहीं है।

कवि पुजारी से कहता है कि वह भी अपने सुंदर वस्त्रों को छोड़कर मजदूरों की तरह बने। उसे भी मिट्टी से सने रास्तों पर चलना चाहिए, क्योंकि उसका भगवान मंदिर में नहीं है, बल्कि कर्मभूमि में है।

मुक्ति ! मुक्ति अरे कहाँ है ? / कहाँ मिलेगी मुक्ति !

कवि पुजारी से पूछता है कि वह मुक्ति, यानी मोक्ष, कहाँ खोज रहा है। यह प्रश्न व्यंग्यपूर्ण है, क्योंकि कवि यह समझाने की कोशिश कर रहा है कि मुक्ति पूजा से नहीं, बल्कि कर्म से मिलेगी।

अपने सृष्टि-बन्ध से प्रभु स्वयं बँधे हैं।

कवि कहता है कि स्वयं भगवान भी सृष्टि के बंधन में बंधे हुए हैं। इसका अर्थ है कि भगवान भी सृजन, यानी निर्माण और कार्य में लगे हुए हैं, और इसी में मुक्ति निहित है।

ध्यान-पूजा को किनारे रख दे / फूल की डाली को छोड़ दे।

कवि पुजारी से कहता है कि वह ध्यान और पूजा को छोड़ दे। ‘फूल की डाली’ यहाँ प्रतीक है उन सभी पूजा विधियों का जो केवल दिखावे के लिए होती हैं। कवि का कहना है कि इन बाहरी विधियों से कुछ नहीं होगा।

वस्त्रों को फटने दे धूलि-धूसरित होने दे / उनके साथ काम करते हुए पसीना बहने दे।

कवि पुजारी से कहता है कि अपने वस्त्रों को भी फटने दे और उन्हें धूल से भर जाने दे, क्योंकि असली पूजा उन मजदूरों के साथ काम करने में है, जो पसीना बहाकर अपने जीवन को सँवार रहे हैं।

पाठ्य प्रश्न और उत्तर (textual questions and answers)

प्रश्न अभ्यास

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिय

1. कवि ने पुजारी से भजन पूजन छोड़ने की बात क्यों कही ?

उत्तर: कवि ने पुजारी से भजन पूजन छोड़ने की बात इसलिए कही है क्योंकि देवता अब देवालय में नहीं हैं। वे उन स्थानों पर चले गए हैं जहाँ लोग मेहनत कर रहे हैं। वहाँ किसान और मजदूर पत्थर तोड़कर रास्ता बना रहे हैं। प्रभु भी सृष्टि-कर्म से बँधे हैं और कर्मभूमि में कार्य कर रहे हैं।

2. ‘तेरा देवता वहीं चला गया है’ पंक्ति से कवि का क्या अभिप्राय है ?

उत्तर: ‘तेरा देवता वहीं चला गया है’ पंक्ति से कवि का अभिप्राय यह है कि भगवान अब देवालय में नहीं हैं, बल्कि वे उन स्थानों पर हैं जहाँ मजदूर और किसान परिश्रम कर रहे हैं। वे उत्पादन और निर्माण कार्यों में व्यस्त हैं।

3. कविता में किसान और मजदूरों के बारे में क्या कहा गया है ?

उत्तर: कविता में किसानों और मजदूरों के बारे में कहा गया है कि वे धूप और बरसात में एकसमान झुलसते और तपते हैं। उनके हाथ मिट्टी में सने हुए हैं और वे परिश्रम करके रास्ता तैयार कर रहे हैं। उनके साथ कर्मभूमि में चलकर काम करने की प्रेरणा दी गई है।

निम्नलिखित पद्यखण्ड का सन्दर्भ सहित सप्रसंग व्याख्या कीजिये

(क) मुक्ति! मुक्ति अरे कहाँ है?
कहाँ मिलेगी मुक्ति!
अपने सृष्टि-बन्ध से प्रभु स्वयं बँधे हैं।

सन्दर्भ: यह पंक्तियाँ रवीन्द्रनाथ ठाकुर की कविता “पुजारी भजन पूजन और साधन” से ली गई हैं।

प्रसंग: इन पंक्तियों में कवि ने मुक्ति के वास्तविक अर्थ को स्पष्ट किया है और धार्मिक रिवाजों की जगह कर्म और परिश्रम को महत्व देने पर जोर दिया है।

व्याख्या: इन पंक्तियों में कवि यह बताना चाहते हैं कि मुक्ति की तलाश करना व्यर्थ है क्योंकि सृष्टि के नियमों से स्वयं प्रभु भी बंधे हुए हैं। सृष्टि का बंधन ही वास्तविकता है और उससे मुक्त होना संभव नहीं है। प्रभु खुद सृजन कार्य में लगे हैं, तो मनुष्य के लिए भी मुक्ति का मार्ग कर्मशीलता के द्वारा ही संभव है। लेखक धार्मिक और कर्मकांडी जीवन से हटकर कर्मभूमि में जाने और मेहनत करने की प्रेरणा देता है। यहाँ मुक्ति का तात्पर्य शारीरिक परिश्रम और रचनात्मक कार्यों में लिप्त होकर आत्मतोष प्राप्त करना है।

(ख) फूल की डाली को छोड़ दे।
वस्त्रों को फटने दे धूलि- धूसरित होने दे
उनके साथ काम करते हुए पसीना बहने दे।

सन्दर्भ: यह पंक्तियाँ रवीन्द्रनाथ ठाकुर की कविता “पुजारी भजन पूजन और साधन” से ली गई हैं।

प्रसंग: इन पंक्तियों में कवि ने पुजारी को धार्मिक आडंबरों और बाहरी सजावटों को त्यागकर कर्म के मार्ग पर चलने का उपदेश दिया है।

व्याख्या: इस वाक्यांश में कवि पुजारी को फूलों और वस्त्रों जैसी प्रतीकात्मक पूजा सामग्री को त्यागने की सलाह देते हैं। कवि के अनुसार, सच्ची पूजा केवल कर्म और परिश्रम में निहित है। पुजारी को देवालय छोड़कर मिट्टी और धूल से सने रास्तों पर मेहनत करने की प्रेरणा दी जा रही है। यहाँ वस्त्रों के फटने और धूल में सने होने के प्रतीक से यह बताया गया है कि सच्चा धर्म दिखावे में नहीं, बल्कि श्रम में है। कवि ने इसे मजदूरों के पसीने से जोड़ा है, जो परिश्रम का प्रतीक है, और इसी में देवता की वास्तविक पूजा निहित है।

सही उत्तर छाँटिये

इस कविता का मूल सन्देश क्या है?

(क) परिश्रम ही सच्ची उपासना है।
(ख) एकान्त आराधना ही सच्ची उपासना है।
(ग) भजन करना ही सच्ची उपासना है।
(घ) देवालय में बैठना ही सच्ची उपासना है।

उत्तर: (क) परिश्रम ही सच्ची उपासना है।

अभ्यास प्रश्

1. निम्नलिखित शब्दों का अर्थ-भेद करते हुए वाक्य बनाइये:

उत्तर: सृष्टि: संसार की रचना।
वाक्य: ईश्वर ने इस सृष्टि की रचना अद्भुत ढंग से की है।

हार: पराजय।
वाक्य: खेल में हार से हमें सीख मिलती है।

वन: जंगल।
वाक्य: जंगल में शेरों का समूह देखा गया।

मूल: जड़ या आधार।
वाक्य: हर समस्या का कोई मूल कारण होता है।

मित्र: दोस्त।
वाक्य: मेरा मित्र हमेशा मेरी सहायता करता है।

2. निम्नलिखित शब्दों के विलोम शब्द लिखिये:

उत्तर: अनुज – अग्रज
आकाश – पाताल
उत्तर – दक्षिण
अमृत – विष
अभिमान – विनम्रता
आय – व्यय
ग्राम्य – नगरीय
प्रेम – द्वेष
सामान्य – विशेष
समर्थन – विरोध
त्रासदी – सुखद घटना
वन – नगर

3. निम्नलिखित शब्दों के पर्यायवाची शब्द लिखिये:

अनुपम – अद्वितीय
असुर – राक्षस
उजाला – प्रकाश
कपड़ा – वस्त्र
कौआ – काक
खल – दुष्ट

गृहकार्य

1. अंग्रेजी में अनुवाद कीजिये:

उत्तर: रामायण हिन्दुओं का पवित्र ग्रन्थ है।
Translation: The Ramayana is a sacred text of Hindus.

श्री पी० शीलू नागालैण्ड के प्रथम मुख्यमन्त्री थे।
Translation: Mr. P. Shilu was the first Chief Minister of Nagaland.

सारामती नागालैण्ड की सबसे ऊँची चोटी है।
Translation: Saramati is the highest peak in Nagaland.

डॉ० राजेन्द्र बाबू साधारण व्यक्ति थे।
Translation: Dr. Rajendra Babu was a simple man.

बच्चे मैदान में खेल रहे थे।
Translation: The children were playing in the field.

2. “परिश्रम ही ईश्वर की उपासना है” का भाव पल्लवन:

उत्तर: इस वाक्य का तात्पर्य है कि सच्ची उपासना केवल मंदिरों या पूजा स्थलों में बैठकर धार्मिक क्रियाकलापों के द्वारा नहीं होती, बल्कि ईश्वर की सच्ची आराधना कर्म और परिश्रम में निहित है। जब व्यक्ति ईमानदारी से अपने कार्यों को पूर्ण निष्ठा और समर्पण के साथ करता है, तो वही कार्य उसकी उपासना बन जाता है। इस विचार में यह संदेश निहित है कि मानव जीवन का उद्देश्य केवल भौतिक आराम और आलस्य में समय व्यतीत करना नहीं है, बल्कि सृजन और सेवा के माध्यम से अपने कर्मक्षेत्र में परिश्रम करना ही ईश्वर को प्रसन्न करता है।

3. नीचे लिखे वाक्यों के प्रश्नवाचक वाक्य:

(क) कोहिमा नागालैण्ड की राजधानी है।

प्रश्नवाचक वाक्य: कोहिमा किसकी राजधानी है?

(ख) तेमजन कल दिल्ली जायगा।

प्रश्नवाचक वाक्य: तेमजन कब दिल्ली जायगा?

(ग) उसने अपने भाई को पाँच सौ रुपये दिये।

प्रश्नवाचक वाक्य: उसने कितने रुपये अपने भाई को दिये?

(घ) बच्चे फुटबाल खेलने के लिए मैदान में खड़े हैं।

प्रश्नवाचक वाक्य: बच्चे मैदान में क्यों खड़े हैं?

निम्नलिखित वाक्यों में परसर्गों की अशुद्धियाँ शुद्ध करके:

(क) अंकुर भावना को भोजन लाया।

शुद्ध वाक्य: अंकुर भावना के लिए भोजन लाया।

(ख) घाव में मरहम लगा दिया।

शुद्ध वाक्य: घाव पर मरहम लगा दिया।

(ग) तुम्हें उसको बताया।

शुद्ध वाक्य: तुमने उसे बताया।

(घ) यह ग्रन्थ उसने दे दो।

शुद्ध वाक्य: यह ग्रन्थ उसे दे दो।

(ङ) चाकू खरबूजा काट लो।

शुद्ध वाक्य: चाकू से खरबूजा काट लो।

(च) मैना डाली में बैठी है।

शुद्ध वाक्य: मैना डाली पर बैठी है।

(छ) खान को कोयला निकलता है।

शुद्ध वाक्य: खान से कोयला निकलता है।

(ज) श्याम रेल को बम्बई गया।

शुद्ध वाक्य: श्याम रेल से बम्बई गया।

(झ) कलमदान मेज में रख दो।

शुद्ध वाक्य: कलमदान मेज पर रख दो।

(ञ) सियाली पेड़ पर नीचे बैठी है।

शुद्ध वाक्य: सियाली पेड़ के नीचे बैठी है।

अतिरिक्त (extras)

प्रश्न और उत्तर (questions and answers)

1. द्वार बन्द करके देवालय के कोने में क्यों बैठा है? अपने मन के अन्धकार में छिपा बैठा, तू कौन-सी आँखें खोलकर ज़रा देख तो सही तेरा देवता देवालय में नहीं है।

उत्तर: यह पंक्तियाँ ‘पुजारी, भजन, पूजन और साधन’ नामक कविता से ली गई हैं, जिसे रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने रचा है। इस अंश में कवि पुजारी को सचेत करते हुए कहता है कि वह देवालय के कोने में बैठकर अपनी पूजा में डूबा हुआ है, लेकिन उसका देवता अब वहाँ नहीं है। कवि पुजारी से कहता है कि वह अपने मन के अंधकार से बाहर निकले और देखे कि उसका देवता अब कर्मभूमि में चला गया है। यहाँ कवि यह संदेश दे रहा है कि पूजा-अर्चना से अधिक महत्त्वपूर्ण कर्म है, और यही सच्ची भक्ति है।

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17. कविता में देवता के स्थान को कैसे व्यक्त किया गया है?

उत्तर: कविता में व्यक्त किया गया है कि देवता देवालय में नहीं हैं, बल्कि कर्मभूमि में हैं, जहाँ मजदूर मेहनत कर रहे हैं।

बहुविकल्पीय प्रश्न (MCQs)

1. कवि के अनुसार पुजारी कहाँ बैठा है?

(क) बाजार में
(ख) खेत में
(ग) देवालय के कोने में
(घ) घर में

उत्तर: (ग) देवालय के कोने में

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10. मजदूरों के दोनों हाथ किससे सने हुए हैं?

(क) खून से
(ख) मिट्टी से
(ग) पानी से
(घ) तेल से

उत्तर: (ख) मिट्टी से

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