भारतीय संस्कृति में गुरु-शिष्य संबंध: NBSE Class 10 Alternative Hindi

भारतीय संस्कृति में गुरु-शिष्य संबंध
Share with others

Get notes, summary, questions and answers, MCQs, extras, and PDFs of Chapter 6 भारतीय संस्कृति में गुरु-शिष्य संबंध” (Bhartiya Sanskriti Mein Guru-Shishya Sambandh) which is part of Nagaland Board (NBSE) Class 10 Alternative Hindi answers. However, the notes should only be treated as references and changes should be made according to the needs of the students.

सारांश (Summary)

इस अध्याय भारतीय संस्कृति में गुरु-शिष्य संबंध (Bhartiya Sanskriti Mein Guru-Shishya Sambandh) में लेखक आनन्द शंकर माधवन (Anand Shankar Madhavan) ने गुरु और शिष्य के पुराने समय के रिश्तों का वर्णन किया है। यह बताया गया है कि पहले के समय में शिक्षा केवल पैसे देकर नहीं खरीदी जाती थी, बल्कि यह एक पवित्र अनुष्ठान था, जिसमें गुरु को भगवान के समान माना जाता था और शिष्य को पुत्र से भी अधिक प्रिय माना जाता था।

गुरु का काम केवल ज्ञान देना नहीं होता था, बल्कि वह शिष्य के जीवन को सही दिशा में मार्गदर्शन करने वाला होता था। उस समय शिक्षा आश्रमों या मंदिरों में दी जाती थी, और गुरु का सम्मान उनके वेतन या पैसों से नहीं, बल्कि उनके ज्ञान और शिक्षा की पवित्रता से किया जाता था। पर आज, यह व्यवस्था बदल गई है। अब शिक्षा एक व्यावसायिक प्रक्रिया बन चुकी है, जहाँ गुरु और शिष्य के बीच का संबंध वैसा नहीं रहा। आज के शिक्षण संस्थानों में गुरु का महत्व केवल एक वेतनभोगी कर्मचारी तक सीमित हो गया है, जो पहले नहीं था।

लेखक इस बात पर भी जोर देते हैं कि गुरु-शिष्य का यह संबंध केवल शिक्षा देने और लेने तक सीमित नहीं होता था। यह संबंध इतना गहरा था कि गुरु शिष्य के भविष्य को सँवारने के लिए हर संभव प्रयास करता था। यहाँ तक कि पुराने समय के पहलवानों, संगीतकारों और साधुओं में यह परंपरा आज भी थोड़ी बहुत देखी जाती है। उदाहरण के तौर पर एक किस्सा बताया गया है, जिसमें गामा पहलवान से जब एक पत्रकार ने उनके शिष्य से कुश्ती करने की बात की, तो गामा चौंक गए। उन्होंने कहा कि उनका शिष्य उनके लिए बेटे से भी अधिक प्रिय है और दोनों में कोई अंतर नहीं है। इस किस्से से यह समझाया गया है कि पुराने समय में गुरु और शिष्य के बीच का संबंध केवल औपचारिक नहीं था, बल्कि एक परिवार की तरह गहरा और आत्मीय था।

लेखक यह भी बताते हैं कि पुराने समय में गुरु को जाति, धर्म, या समुदाय के आधार पर नहीं आंका जाता था। अच्छे गुणों, मेहनत, और भक्ति को ही महत्व दिया जाता था। गुरु-शिष्य के संबंध में केवल ज्ञान और साधना की अहमियत थी, न कि धर्म या जाति की।

अंत में, लेखक ने इस बात पर चिंता व्यक्त की है कि आज गुरु-शिष्य के संबंध में वह पुरानी पवित्रता और आत्मीयता नहीं रही। अब गुरु केवल सेवा लेने में रुचि रखते हैं, देने में नहीं। पहले गुरु अपने शिष्यों की सेवा के रूप में उन्हें शिक्षा देते थे, पर आज यह भावना खो चुकी है। लेखक यह भी बताते हैं कि पुराने समय में जिस तरह से गुरु-शिष्य के संबंधों को देखा जाता था, वैसा दृष्टिकोण आज के समाज में कहीं खो गया है।

यह अध्याय हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि शिक्षा का उद्देश्य केवल ज्ञान देना नहीं, बल्कि शिष्य के जीवन में सही मार्गदर्शन करना भी है, और इसके लिए गुरु और शिष्य के बीच एक गहरा आत्मीय संबंध होना चाहिए।

Register Login

Video tutorial

पाठ्य प्रश्न और उत्तर (textual questions and answers)

प्रश्न और उत्तर

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिये

(क) यूरोप के प्रभाव के कारण आज गुरु-शिष्य सम्बन्ध में क्या अन्तर आ गया है?

उत्तर: यूरोप के प्रभाव के कारण आज गुरु-शिष्य सम्बन्ध में बहुत अन्तर आ गया है। पहले गुरु-शिष्य का सम्बन्ध आध्यात्मिक अनुष्ठान के समान था। वह परमेश्वर प्राप्ति का माध्यम था। पैसे देकर विद्या खरीदी नहीं जाती थी। अब शिक्षण-कार्य पेट पालने का साधन बन गया है। गुरु वेतनभोगी हो गये हैं और शिष्य को शिक्षा प्राप्त करने के लिए शुल्क देना पड़ता है।

(ख) पुजारी की शक्ति मूर्ति में कैसे विकसित होने लगती है?

उत्तर: पुजारी की शक्ति मूर्ति में उसकी भाव-पूजा में नैवेद्य-भावना भरी रहने से विकसित होने लगती है। मूर्ति में स्वयं कुछ भी नहीं होता, परन्तु पुजारी की शक्ति ही मूर्ति में विकसित होती है।

(ग) विवेकानन्द और रवीन्द्रनाथ ठाकुर को अधिक महत्त्व पहले क्यों नहीं मिला?

उत्तर: प्रारम्भ में विवेकानन्द को भारत में महत्त्वपूर्ण स्थान नहीं मिला, पर जब उन्होंने अमेरिका में नाम कमा लिया तो भारतवासी उनके स्वागत के लिए दौड़े। रवीन्द्रनाथ ठाकुर को भी जब नोबल पुरस्कार मिला, तब बंगाली लोग उनका स्वागत करने दौड़े। इससे यह सिद्ध होता है कि देशवासी तब ही किसी व्यक्ति को महत्त्व देते हैं, जब उसे विदेशों में मान्यता मिल जाती है।

निम्नलिखित वाक्यांशों की सन्दर्भ सहित सप्रसंग व्याख्या कीजिये

(क) “सम्मान पानेवाले से सम्मान देनेवाले महान् होते हैं।”

उत्तर: सन्दर्भ: यह वाक्यांश पाठ “भारतीय संस्कृति में गुरु-शिष्य सम्बन्ध” से लिया गया है।

प्रसंग: इसमें लेखक आनन्द शंकर माधवन ने भारतीय गुरु-शिष्य परम्परा की महत्ता को समझाते हुए यह बताया है कि इस परम्परा में सम्मान देनेवाले व्यक्ति का दर्जा सम्मान पानेवाले से अधिक ऊँचा माना जाता है।

व्याख्या: इस वाक्यांश में लेखक ने स्पष्ट किया है कि भारतीय संस्कृति में केवल वही व्यक्ति महान नहीं माना जाता जो सम्मान पाता है, बल्कि वह व्यक्ति भी महान होता है जो सम्मान देने में पहल करता है। भारतीय समाज में यह माना जाता है कि गुरु को सम्मान देना शिष्य का सबसे बड़ा कर्तव्य है। सम्मान प्राप्त करने से अधिक महत्वपूर्ण है सम्मान देना क्योंकि इससे व्यक्ति की विनम्रता, सेवा और समर्पण की भावना प्रकट होती है। यह विचार भारतीय परम्पराओं के मूल में है, जहाँ महानता का मापदण्ड प्राप्ति नहीं, बल्कि त्याग और सेवा होती है। यहाँ तक कि जीवन के हर क्षेत्र में यही सिद्धान्त लागू होता है—गुरु-शिष्य सम्बन्धों से लेकर व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन तक। यही कारण है कि गुरु-शिष्य परम्परा में शिष्य को हमेशा अपने गुरु से अधिक महानता प्रदान करने की कोशिश की जाती है, ताकि समाज में यह सम्बन्ध सदा आदर्श रूप में बना रहे।

(ख) “ऐसे लोगों को प्राचीन गुरु-शिष्य सम्बन्ध की महिमा सुनाना गधे को गणित सिखाने जैसा व्यर्थ प्रयास ही हो सकता है।”

उत्तर: सन्दर्भ: यह वाक्यांश पाठ “भारतीय संस्कृति में गुरु-शिष्य सम्बन्ध” से लिया गया है।

प्रसंग: इसमें लेखक आनन्द शंकर माधवन ने उन लोगों के दृष्टिकोण पर व्यंग्य किया है, जो प्राचीन गुरु-शिष्य सम्बन्ध की महत्ता को नहीं समझ पाते और केवल आधुनिक व्यावसायिक दृष्टिकोण को अपनाते हैं।

व्याख्या: इस वाक्यांश में लेखक ने भारतीय गुरु-शिष्य परम्परा की अवमानना करने वालों के प्रति कटाक्ष किया है। उनका मानना है कि आज की भौतिकवादी और व्यावसायिक सोच ने गुरु-शिष्य सम्बन्धों की पवित्रता को नष्ट कर दिया है। वर्तमान समय के लोग शिक्षण को एक व्यापारिक दृष्टिकोण से देखते हैं और गुरु-शिष्य के आध्यात्मिक सम्बन्ध को नहीं समझ पाते। लेखक यहाँ यह कहना चाहते हैं कि ऐसे लोगों को प्राचीन गुरु-शिष्य सम्बन्ध की महिमा बताना उतना ही व्यर्थ है, जितना कि एक गधे को गणित सिखाना। गधे के लिए गणित की शिक्षा निरर्थक होती है, ठीक उसी प्रकार जिन लोगों की मानसिकता केवल भौतिक लाभों पर आधारित होती है, उन्हें उच्च नैतिक और आध्यात्मिक मूल्यों की महत्ता समझाना असंभव है। लेखक यहाँ उन लोगों की आलोचना करते हैं, जो केवल पश्चिमी जीवनशैली और शिक्षण प्रणाली से प्रभावित हैं और भारतीय संस्कृति के गहन मूल्यों की उपेक्षा करते हैं।

उचित उत्तर के सामने (✓) का निशान लगाइये

प्राचीन भारत में गुरु-शिष्य सम्बन्ध बहुत उत्तम क्यों थे ?

(क) गुरु शिष्यों को पुत्र जैसा मानते थे।
(ख) गुरु पेट पालने के लिए शिक्षा दान करते थे।
(ग) प्राचीन शिक्षा-पद्धति बहुत कठिन थी।
(घ) गुरु जाति- पाँति में विश्वास करते थे।

उत्तर: (क) गुरु शिष्यों को पुत्र जैसा मानते थे।

निम्नलिखित शब्दों का अर्थ लिखकर वाक्यों में प्रयोग कीजिये

उत्तर: तदनुरूप
अर्थ: उसके अनुसार
वाक्य प्रयोग: उन्होंने अपने कार्य की योजना को परिस्थितियों के तदनुरूप बदल दिया।

चेष्टा
अर्थ: प्रयत्न, कोशिश
वाक्य प्रयोग: उसने अपनी समस्या को हल करने की पूरी चेष्टा की।

ख्याति
अर्थ: यश, प्रसिद्धि
वाक्य प्रयोग: उनकी संगीत के क्षेत्र में ख्याति दूर-दूर तक फैली हुई है।

क्षितिज
अर्थ: आकाश और धरती के मिलने का काल्पनिक बिन्दु
वाक्य प्रयोग: समुद्र के किनारे खड़े होकर क्षितिज का दृश्य मनोहारी लगता है।

रसास्वादन
अर्थ: रस का स्वाद लेना
वाक्य प्रयोग: श्रोता ने कवि की कविता का गहराई से रसास्वादन किया।

रँग जाना
अर्थ: निमग्न होना, पूर्णतः डूब जाना
वाक्य प्रयोग: वह अपने काम में इस तरह रँग गया कि समय का ध्यान ही नहीं रहा।

फ़रक
अर्थ: अन्तर, भेद
वाक्य प्रयोग: इस बात में सच और झूठ का फ़रक स्पष्ट दिखता है।

अभ्यास प्रश्न

1. कारक किसे कहते हैं ?

उत्तर: संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से उसका सम्बन्ध वाक्य में अन्य शब्दों से जाना जाता है वह ‘कारक’ कहलाता है।

2. कारक के सभी भेद अर्थ सहित लिखिये ।

उत्तर:

  • कर्त्ताकारक – क्रिया को करनेवाला
    प्रयुक्त चिह्न: ने
  • कर्मकारक – जिस पर क्रिया का प्रभाव पड़े
    प्रयुक्त चिह्न: को
  • करणकारक – जिस साधन से क्रिया हो
    प्रयुक्त चिह्न: से, के द्वारा
  • सम्प्रदानकारक – जिसकी हित पूर्ति क्रिया से हो
    प्रयुक्त चिह्न: को, के लिए
  • अपादानकारक – जिससे अलगाव हो
    प्रयुक्त चिह्न: से
  • सम्बन्धकारक – क्रिया से भिन्न किसी अन्य पद से सम्बन्ध सूचित करनेवाला
    प्रयुक्त चिह्न: का, की, के
  • अधिकरणकारक – क्रिया का आधार
    प्रयुक्त चिह्न: में, पर
  • सम्बोधनकारक – जिस संज्ञा को पुकारा जाय
    प्रयुक्त चिह्न: हे, ओ, अरे

3. निम्नलिखित वाक्यों में कारक सम्बन्धी अशुद्धियाँ दूर कीजिये-

उत्तर: (क) मैंने पास हो गया हूँ – मैं पास हो गया हूँ।

(ख) बकरी से दूध लाओ – बकरी का दूध लाओ।

(ग) उधर राम का पिता जी आया – उधर राम के पिता जी आए।

(घ) तुमने कौन को सन्देश दिया – तुमने किसे सन्देश दिया।

(ङ) जूते कहाँ को रखे है – जूते कहाँ रखे हैं।

(च) नदी पहाड़ में निकलती है – नदी पहाड़ से निकलती है।

(छ) पुस्तक मेज में है – पुस्तक मेज पर है।

(ज) पुस्तक मेज में रख दो – पुस्तक मेज पर रख दो।

(झ) चिड़ियाँ आकाश पर उड़ती है – चिड़ियाँ आकाश में उड़ती हैं।

(ञ) मैं नेत्रो को देखता हूँ – मैं नेत्रों से देखता हूँ।

4. निम्नलिखित वाक्यों में करण और अपादानकारक के वाक्य छाँटकर लिखिये-

उत्तर:

  • करणकारक: (क) कच्ची सब्जी खाने से दाँत मजबूत होते हैं। (घ) मैं नेत्रों से देखता हूँ।
  • अपादानकारक: (ख) अवेद बस से गिर पड़ा। (ग) उसने जेब से पेन निकाला। (ङ) वृक्ष से पत्ते गिरते हैं।
गृहकार्य

विज्ञान : वरदान या अभिशाप, विषय पर २०० शब्दों का एक निबन्ध लिखिये ।

विज्ञान : वरदान या अभिशाप

विज्ञान आधुनिक युग का सबसे बड़ा वरदान है। इसके बिना आज की दुनिया की कल्पना करना असंभव है। विज्ञान ने मानव जीवन को सरल, सुखद और उन्नत बनाया है। बिजली, वाहन, चिकित्सा, संचार, और कृषि के क्षेत्र में विज्ञान की अद्भुत प्रगति ने जीवन को सुविधाजनक और आरामदायक बनाया है। विज्ञान के माध्यम से मनुष्य ने चाँद पर कदम रखा और समुद्र की गहराइयों तक पहुंचा। कंप्यूटर और इंटरनेट ने पूरी दुनिया को एक गाँव जैसा बना दिया है।

परन्तु, विज्ञान का दुरुपयोग मानवता के लिए अभिशाप भी बन सकता है। युद्ध के समय परमाणु बम और अन्य विनाशकारी हथियारों का उपयोग विनाशकारी परिणाम लेकर आता है। प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन, और प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुंध दोहन भी विज्ञान के दुरुपयोग के उदाहरण हैं। आज की तकनीकी तरक्की ने जहाँ जीवन को सहज बनाया है, वहीं पर्यावरणीय असंतुलन और नैतिक पतन की समस्याएँ भी उत्पन्न की हैं।

इस प्रकार, विज्ञान एक वरदान है जब उसका उपयोग मानवता की भलाई के लिए किया जाता है, लेकिन जब इसका दुरुपयोग होता है, तो यह अभिशाप का रूप धारण कर लेता है। इसका विवेकपूर्ण और संतुलित उपयोग ही मानव समाज के विकास का सही मार्ग हो सकता है।

अतिरिक्त (extras)

प्रश्न और उत्तर (questions and answers)

1. भारतीय संस्कृति के स्थान पर आज कौन सी संस्कृति व्याप्त है?

उत्तर: आज भारतीय मानसिक क्षितिज में अव्यवस्थित व्यावसायिक संस्कृति व्याप्त है।

Missing answers are only available to registered users. Please register or login if already registered. How to register? Click on Menu and select Register

18. भारतीय संस्कृति का कौन सा रहस्य भारतीय लोग नहीं समझते?

उत्तर: भारतीय लोग यह रहस्य नहीं समझते कि मूर्ति की शक्ति पुजारी की भाव-पूजा में निहित होती है।

बहुविकल्पीय प्रश्न (MCQs)

1. विवेकानन्द को भारत में पहले महत्त्व कब मिला?

(क) नोबल पुरस्कार के बाद
(ख) अमेरिका में ख्याति के बाद
(ग) रवीन्द्रनाथ ठाकुर के बाद
(घ) दक्षिण भारत में भरतनाट्यम के बाद

उत्तर: (ख) अमेरिका में ख्याति के बाद

Missing answers are only available to registered users. Please register or login if already registered. How to register? Click on Menu and select Register

15. भारतीय गुरु-शिष्य परम्परा का भव्य रूप आज किसमें थोड़ा-बहुत मिलता है?

(क) व्यापारियों में
(ख) साधुओं, पहलवानों और संगीतकारों में
(ग) राजनेताओं में
(घ) शिक्षकों में

उत्तर: (ख) साधुओं, पहलवानों और संगीतकारों में

Get notes of other boards, classes, and subjects

NBSESEBA/AHSEC
NCERTTBSE
WBBSE/WBCHSEICSE/ISC
BSEM/COHSEMMBOSE
Custom Notes ServiceQuestion papers

Share with others

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *


Only registered users are allowed to copy.