भारतीय संस्कृति में गुरु-शिष्य संबंध

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Short introduction of chapter 5: भारतीय संस्कृति में गुरु-शिष्य संबंध (Bhartiya Sanskriti Mein Guru Shishya Sambandh) which is a part of the syllabus of class 10 alternative Hindi for students studying under Nagaland Board of School Education: इस अध्याय में लेखक आनंद शंकर माधवन वर्तमान समय के शिक्षण कार्य की तुलना भारत में पाए जाने वाले पुरानी व्यवस्था से किया है l वह कहते हैं कि हमारे समाज में व्यवसायिक संस्कृति का बोलबाला है l इसी कारण गुरु शिष्य संबंधों में परिवर्तन आया है और कुछ भी पहले जैसा ना रहा l पहले विद्यालय मंदिर के समान माने जाते थे और शिक्षा देना एक आध्यात्मिक अनुष्ठान था l शिक्षा को परमेश्वर प्राप्ति का एक माध्यम माना जाता था l पैसे देकर शिक्षा खरीदी नहीं जाती थी l आज स्थिति बिल्कुल अलग है और अब शिक्षण कार्य पेट पालने का साधन बन गया है l

यहां आपको इस अध्याय के सभी प्रश्न उत्तर मिल जाएंगे l

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए

क. यूरोप में प्रभाव के कारण आज गुरु-शिष्य संबंध में क्या अंतर आ गया है?

उत्तर: यूरोप में प्रभाव के कारण आज गुरु शिष्य के संबंध में व्यवसायिक संस्कृति व्याप्त हो गई है l विद्या का क्रय-विक्रय होने लगा है l गुरु शिष्य के संबंध अब पिता पुत्र के जैसे नहीं रह गया है l

ख. पुजारी की शक्ति मूर्ति में कैसे विकसित होने लगती है?

उत्तर: किसी भी भगवान के मंदिर में मूर्ति की शक्ति उतनी मात्रा तक ही संभव है जितनी मात्रा तक उसके पुजारी की भाव पूजा में नैवेध भावना भरी रहती है l मंदिर में स्वयं कुछ भी नहीं है तो पुजारी की शक्ति ही मूर्ति में विकसित होने लगती है l

ग. विवेकानंद और रविंद्र नाथ ठाकुर को अधिक महत्व पहले क्यों नहीं मिला?

उत्तर: विवेकानंद और रविंद्र नाथ ठाकुर को पहले अधिक महत्व नहीं मिला क्योंकि यहां के लोग अपनी खूबसूरती को भुलाकर दूसरे के सौंदर्य पर मोहित हो जाते थे l परंतु जब अमेरिका में विवेकानंद जी को सम्मान मिला और रविंद्र नाथ ठाकुर को नोबेल सम्मानित किया गया तब भारतवासी के नजर में उनका महत्व बढ़ गया l

निम्नलिखित वाक्यांशों की संदर्भ सहित सप्रसंग व्याख्या कीजिए

1. “सम्मान पाने वाले से सम्मान देने वाला महान होते हैं l”

उत्तर: संदर्भ: प्रस्तुत पंक्ति हमारी पाठ्यपुस्तक भाषा सरिता भाग 2 के भारतीय संस्कृति में गुरु शिष्य संबंध नामक पाठ से लिया गया है l इसके लेखक आनंद शंकर माधवन है l

प्रसंग: लेखक ने इस पंक्ति के माध्यम से कलाकार के अपेक्षा से कला के पुजारी को श्रेष्ठ बताया है l

व्याख्या: लेखक के अनुसार कविता के मम॔ज के और रसिक स्वयं कवि से अधिक महान होते हैं l संगीत के पागल सुनने वाले ही स्वयं संगीतकार से अधिक संगीत का मजा लेते हैं l यहां पूज्य नहीं, पुजारी ही श्रेष्ठ है l फूलों में कुछ नहीं है, फूलों का सौंदर्य उसे देखने की दृष्टि में है l हम इस दुनिया को जैसी दृष्टि में देखेंगे हमें वैसे ही नजर आएगा l

2. “ऐसे लोगों को प्राचीन गुरु शिष्य संबंध की महिमा सुनाना गधे को गणित सिखाने जैसा व्यर्थ प्रयास ही हो सकता है l”

उत्तर: संदर्भ: प्रस्तुत पंक्ति हमारी पाठ्यपुस्तक भाषा सरिता भाग 2 के भारतीय संस्कृति में गुरु शिष्य संबंध नामक पाठ से लिया गया है l इसके लेखक आनंद शंकर माधवन है l

प्रसंग: इस पंक्ति के माध्यम से लेखक ऐसे लोगों के बारे में बात करते हैं जिनको अपने देश से प्यार नहीं l

व्याख्या: लेखक के अनुसार हमारी संस्कृति में इतनी अपूर्व चीजें भरी पड़ी है लेकिन लोगों को इसकी पहचान नहीं है जब तक कि दूसरे देश के लोग से हमारी आंखें ना खुलती है l विवेकानंद और रविंद्र नाथ ठाकुर को जब भी देश में सम्मान मिला जब हम भी उनका स्वागत करने के लिए दौरे l जिस देश में जन्म पाने के लिए विदेशी लोग ललासित रहते हैं उस देश के निवासी जर्मनी और विलायत जाना स्वर्ग जैसा समझते हैं l ऐसे लोगों को प्राचीन गुरु शिष्य संबंध की महिमा सुनाना गधे को गणित सिखाने जैसा है l

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